(एक सच्ची घटना ) कोल्हू का बैल बन कर चुकाना पड़ा था कर्ज

हिंदी के महान लेखक पंडित श्री नारायण जी चतुर्वेदी परम्  वैश्णो भक्त थे उन्होंने एक बार अपने निवास स्थान पर एक कहानी सुनाई थी जोकि सच्ची  घटना पर आधारित थी इस कहानी में  एक दिवान साहब के पिता द्वारा तेली के बैल बनकर ऋण चुकाने का वर्णन था | 
दोस्तों कहानी बड़ी रोचक है इसलिए पूरी  ध्यान  से पड़े इटावा में  श्याम सुंदर लाल नाम के  एक व्यक्ति रहते  थे जो राजस्थान के किशनगढ़ नाम की जगह के दिवान थे सभी लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे वह अपने सारे कर्त्तव्य निभाता था सभी लोगो को उस पर बहुत  गर्व  था  वह साल में 2 -3 बार इटावा आते थे एक बार सुंदर लाल अपने गांव इटावा आये उसने एक दिन  अपने नौकर से कहा की वो नाइ के पास जाये और  बोले मुझे कहि सुबह जल्दी जाना है तो नाइ सुबह जल्दी आकर मेरी दाढ़ी बना दे अगले दिन दिवान साहब ने नाइ से पूछा क्या यहां कोई शंकर नाम का तेली रहता है नाई ने उन्हें बताया हाँ कुछ ही दुरी पर एक इमली का पेड़ है उसके नीचे उसका घर है पर शंकर तेली तो मर चूका है और अब तो  उसका बेटा तेल निकलता है 
दिवान साहब ने नाई से कहा मुझे इसी समय उसके घर ले चलो तभी वो नाई के साथ तेली के घर गया तेली  का बेटा दीवान साहब को जानता था वो सुबह सुबह दिवान साहब को अपने घर के सामने देख कर चौंक गया दिवान साहब ने तेली को पूछा तुम्हारा कोलू जो तेल निकालने के काम आता है वो चल रहा है उसने कहा हाँ चलता है  दिवान साहब ने उसे उस कोल्हू के पास ले जाने को कहा वो उसको कोल्हू के पास ले गया दिवान साहब ने देखा एक बूढ़ा सा बैल कोल्हू चला रहा है वह उसे देख हैरान हो गया और वह उस बैल के पास जाकर खड़ा हो गया बैल उसके कुर्ते को मुँह से पकड़ने का प्रयास करने लगा दिवान साहब ने  उससे  पूछा तुम्हारा बैल कितने का है जितने में तुमने ख़रीदा है उससे अधिक मूल्य में मुझे दे दो इतना कहकर उसने 14 रुपये अपनी जेब से निकले और तेली के बेटे को दे दिए तेली का बेटा सोच में पड़ गया और उसने सोचा इतने बूढ़े बैल के मुझे 14 रूपये मिल रहे है उसने उस बैल को दिवान साहब को दे दिया 
दिवान साहब बैल को लेकर चल दिया जैसे ही एक चढ़ाई आई बैल गिर पड़ा और वहां एक शिव मंदिर था वह  मंदिर की तरफ देखने लगा और उसने अपने प्राण त्याग दिए दिवान साहब ने कुछ मंत्र बोले और अपने कुछ सिपाहियों नोकरो को बुला कर बैल को यमुना किनारे ले गए वहां पुरी विधी विधान के साथ उसको वहां दबवाया उसके बाद वह 4 किलोमीटर  चलकर घर वापिस आ गए 
इस कहानी का सार यह है जब दिवान साहब से पूछा गया उसने बताया की आज सुबह उसके सपने में उसके पिता जी आए उन्होंने मुझे  कहा की तुम आज दिवान साहब बनकर मुझे याद भी नहीं करते और एक अच्छी जिंदगी जी रहे हो मैंने कभी तुम्हारी जरूरतों को पूरा करने के लिए शंकर तेली से पैसे उधार लिए थे जो मै चूका नहीं पाया था जिसके कारण आज मै उसके बेटे के कोल्हू का बैल बनकर वो ऋण चूका रहा हु और अगर तुम उस ऋण को चूका दो तो मेरी मुक्ति संभव है और दिवान साहब ने बताया इस सपने को देखने के बाद मै तेली के घर गया और उसके 14 रूपये देकर अपने पिता का ऋण चुकाया दिवान साहब ने ये भी बताया जब उस बैल ने शिव मंदिर के सामने अपने प्राण त्याग दिए जब उसे अपने सपने पर तनिक भी संदेह नहीं हुआ 

हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में लिखा है किसी का ऋण चुकाए बिना आदमी  की मुक्ति संभव नहीं है अगर कोई अपने माता पिता का श्राद करता है तो वो उसका लिया हुआ ऋण चुकाए तभी उसकी मुक्ति संबव है   ऐसी ही एक और सच्ची कहानी पढ़ने के लिए निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे                        shitla mata ki khani



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